email - cmraj@rajasthan.gov.in , cmrajasthan@nic.in
A non Adivasi person's respectful celebration of the struggles of the Bhil indigenous people of India against the depredations of modern development - mostly exhilarating but sometimes depressing stories of a people who believe in drinking life to the leas.
Anarcho-environmentalism allegorised
The name Anaarkali in the present context has many meanings - Anaar symbolises the anarchism of the Bhils and kali which means flower bud in Hindi stands for their traditional environmentalism. Anaar in Hindi can also mean the fruit pomegranate which is said to be a panacea for many ills as in the Hindi idiom - "Ek anar sou bimar - One pomegranate for a hundred ill people"! - which describes a situation in which there is only one remedy available for giving to a hundred ill people and so the problem is who to give it to. Thus this name indicates that anarcho-environmentalism is the only cure for the many diseases of modern development! Similarly kali can also imply a budding anarcho-environmentalist movement. Finally according to a legend that is considered to be apocryphal by historians Anarkali was the lover of Prince Salim who was later to become the Mughal emperor Jehangir. Emperor Akbar did not approve of this romance of his son and ordered Anarkali to be bricked in alive into a wall in Lahore in Pakistan but she escaped. Allegorically this means that anarcho-environmentalists can succeed in bringing about the escape of humankind from the self-destructive love of modern development that it is enamoured of at the moment and they will do this by simultaneously supporting women's struggles for their rights.
Tuesday, February 18, 2014
A Tribal Mining Workers' Strike
email - cmraj@rajasthan.gov.in , cmrajasthan@nic.in
2 comments:
प्रिय राहुल
ज़िंदाबाद
मुझे यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आपने अपने ब्लॉग अनारकली में केसरियाजी-खेरवाड़ा के ग्रीन मार्बल माइंस मजदूरों के आंदोलन के बारे में लिखा है। यह भी अच्छी बात है कि सुधीरजी ने इसका समर्थन किया है अन्य अनेक संगठन ,संस्थाएं और आप जैसी पार्टिया भी समर्थन करने पहुंची है। मैं कुछ तथ्यात्मक जानकारी देना चाहता हूँ जो इस प्रकार है-
१ इस तरह का आंदोलन इस क्षेत्र में पहली बार नहीं हो रहा है। २००२ में इससे भी बड़ा आंदोलन हुआ था जो एक माह से ज्यादा समय तक चला। जबर्दस्त दमन हुआ।
गोलिया चली जिसमे एक आदिवासी युवा लक्ष्मण मारा गया था और ४०० लोगो पर झूठे मुकददमे लगे थे। खेरवाड़ा का जागरूक युवा संगठन हर साल १५ सितम्बर को लक्ष्मण कि शहादत को याद करता है।
२ यह आंदोलन जनजाति खान मजदूर यूनियन द्वारा शुरू किया गया है और वे पिछले एक माह से धरने पर बैठे है तथा उनके लीडरस पर इस समय तीन केस लगे हुए है तथा अभी तक जमानत नहीं हुई है। जबर्दस्त दबाव का वतावरन है तथा लोगो में रोष बढता जा रहा है।
३ क्षेत्र में संस्थाओं के कार्यकर्ताओ,दलगत राजनीतिक पार्टिओं के गुर्गो के साथ ही बिचोलियों ने डर का वातावरण फ़ैलाने कि कोशिश की है तथा इस समय मजदूर लीडरशिप विहीन से है लेकिन डटे हुए है।
४. २४ फरवरी को स्थानीय मजदूर हक्क संगठन जो एक प्रकार से वर्कर्स सोलिडेरिटी टाइप का संगठन है,ने खान मजदूरो के समर्थन में भाई चारा रैली निकलने का फैसला लिया है। इस हेतु ५००० पर्चे निकले है और पोस्टर चिपकाएँ है। रैली के बारे में बाद में विस्तार से लिखूंगा।
५. यह भी तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है कि यंहा आधे मजदूर बाहर के है। २००२ के बाद खदान मालिको ने यह गलती नहीं दोहराई है। इस समय क्षेत्र में २५० से अधिक कानूनी और गैर कानूनी खदाने है जिनमे लगभग दस हजार ( डूंगरपुर के कुछ क्षेत्र को जोड़ देवे तो ) खदानो से सम्बंधित काम करने वाले मजदूर है।
बाकी बाद में
डी एस पालीवाल, जनवादी मजदूर यूनियन उदयपुर
Some details of Mine worker's agitation is available on my FB page
DS Paliwal
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