Anarcho-environmentalism allegorised

The name Anaarkali in the present context has many meanings - Anaar symbolises the anarchism of the Bhils and kali which means flower bud in Hindi stands for their traditional environmentalism. Anaar in Hindi can also mean the fruit pomegranate which is said to be a panacea for many ills as in the Hindi idiom - "Ek anar sou bimar - One pomegranate for a hundred ill people"! - which describes a situation in which there is only one remedy available for giving to a hundred ill people and so the problem is who to give it to. Thus this name indicates that anarcho-environmentalism is the only cure for the many diseases of modern development! Similarly kali can also imply a budding anarcho-environmentalist movement. Finally according to a legend that is considered to be apocryphal by historians Anarkali was the lover of Prince Salim who was later to become the Mughal emperor Jehangir. Emperor Akbar did not approve of this romance of his son and ordered Anarkali to be bricked in alive into a wall in Lahore in Pakistan but she escaped. Allegorically this means that anarcho-environmentalists can succeed in bringing about the escape of humankind from the self-destructive love of modern development that it is enamoured of at the moment and they will do this by simultaneously supporting women's struggles for their rights.

Wednesday, August 12, 2020

ज़िंदगी में सार्थकता की तलाश

 40 वर्ष पहले मैंने अमरीकी लेखक और पर्यावरणविद Wendell Berry का एक लेख The Humanist पत्रिका में पढ़ा था जिसमें उन्होने किसानी एवं ग्रामीण परिवेश को स्वस्थ जीवन जीने के लिए सर्वोत्तम बताया था। साथ ही उस समय मैं ने गांधी और उपनिषद भी पढ़ा। उन दिनों मैं civil engineering की तीसरी वर्ष की पढ़ाई कर रहा था पर फिर भी इस वैकल्पिक पढ़ाई से प्रेरित होकर मैंने कुछ ही महीनों बाद तय किया कि भविष्य में गाँव में रहकर किसानी करूंगा। इसलिए engineering की पढ़ाई पूरी कर मैं एक गाँव में रहने चला गया और फिर वहाँ से एक दूसरा गाँव और आखिर मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले में भील आदिवासियों के बीच में पहुँच गया।

क्योंकि मैंने मेरी वैकल्पिक पढ़ाई के दौरान Marx, Proudhon, Bakunin जैसे प्रगतिशील लोक राजनीति के सूत्रधारों को भी पढ़ा था और उनके विचारों से भी प्रभावित था, इसलिए अलीराजपुर के गाँव में रहना तो हो गया पर खेती करने के बजाय मैंने भील आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष में व्यस्त हो गया। हालांकि कुछ सालों बाद मेरी शादी एक किसान परिवार की लड़की, सुभद्रा, से हुई, पर वो भी महिलावादी क्रांतिकारी विचार की थी इसलिए हमारा संघर्षशील जीवन जारी रहा और हम जेल के अंदर बाहर होते रहे। पर सरकार के साथ टक्कर का जीवन जोखिम भरा होता है एवं सन 2001 में एक भयानक संघर्ष हुआ जिसमें हमारे संगठन के चार साथी पुलिस की गोली से मारे गए एवं हम दूसरे बहुत सारे लोग कई महीनों तक जेल में बंद रहे।
इसके बाद हमने गाँव और आक्रामक संघर्ष को छोडकर इंदौर शहर में रहने आ गए एवं सेवा प्रदाय और शोध कार्य में व्यस्त हो गए। पर कुछ सालों बाद शहर की ज़िंदगी से हम ऊब गए और सुभद्रा ने गाँव में रहकर खेती करने की इच्छा जताई। सो सन 2012 में हम खेती के लिए ज़मीन ढूँढने लगे। पर हमें ऐसी ज़मीन चाहिए थी जो पहाड़ी क्षेत्र में हो, जंगल के पास हो, एक ऐसे आदिवासी क्षेत्र में हो जहां हमारा कोई संगठन चल रहा हो, इंदौर शहर के पास हो और जहां फोन और internet उपलब्ध हो। इतने सारे शर्तों को पूरी करना कठिन था इसलिए हम ढूंढते रह गए पर बहुत समय तक ज़मीन नहीं मिली। आखिर सन 2015 में हमें मन पसंद ज़मीन देवास ज़िले के पांडुतालाब गाँव में मिल गई। अब पाँच साल बाद वो ज़मीन और उसपर बना मकान के जरिये हम खाद्य उत्पादन, ऊर्जा एवं पानी के मामले में स्वनिर्भर हो गए है।

सुभद्रा ने तो खेती में मदद के लिए नियुक्त किए गए एक आदिवासी दंपति के साथ मिलकर तुरंत किसानी में भीड़ गई पर मैं कभी कभार ही खेत में रहता था और खेती में काम करता था। इसलिए मैंने Berry का इस दावा का परीक्षण नहीं कर पाया कि किसानी से एक स्वस्थ्य ज़िंदगी संभव है। पर इस साल जून महीने में हमें खेती में मदद करने वाले आदिवासी दंपति काम छोड़ कर चले गए। क्योंकि सुभद्रा के लिए अकेली पूरी खेती को संभालना संभव नहीं था इसलिए मुझे भी डटकर किसानी में हिस्सा लेना पड़ा। किसानी में शारीरिक और मानसिक मेहनत दोनों ही अधिक चाहिए होती है। क्योंकि किसानी बहुत सारे परिवर्तनशील घटकों पर निर्भर करता है इसलिए किसानों को हर वक्त सचेत रहना होता है। नतीजतन आजकल खेती कि अनिश्चितता के कारण साधारण किसान तनाव ग्रस्त रहता है। पर मैं साधारण किसान नहीं हूँ। Berry ने उपरयुक्त लेख में एक बहुत ही मार्के की सलाह दी थी कि अगर किसानी का मज़ा लेना है तो आजीविका के रूप में किसानी नहीं करनी चाहिए एवं मैं उस सलाह को मानकर किसानी केवल खाद्य उत्पादन एवं शारीरिक और मानसिक मेहनत के लिए करता हूँ। आमदनी के लिए मैं दूसरा काम करता हूँ जो हमारे खेत पर internet उपलब्ध होने के कारण संभव है।
फल स्वरूप विगत ढाई महीने से पूर्णकालिक रूप से खेती करने के कारण मेरा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया है। गत 15 सालों से मैं Psoriasis नामक चर्म रोग से पीड़ित था जिसके चलते लगातार चमरी के छिलके निकलना और खुजली चलना जारी था। मैंने इसके लिए allopathy, homoeopathy, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा आदि में इलाज कराया पर कोई असर नहीं हुआ। बल्कि एक चर्म रोग विशेषज्ञ तो कह दिया कि यह बीमारी मरते समय तक साथ रहेगा और मुझे इसे मेरी दूसरी पत्नी मान लेनी चाहिए। जब मैं सुभद्रा को चिकित्सक की यह बात बताया तो उसने कही कि यह बीमारी मेरी दूसरी नहीं बल्कि तीसरी पत्नी होगी क्योंकि मेरा पहला प्यार आदिवासी है और वो मेरी दूसरी पत्नी है!! परंतु अब यह पुरानी बीमारी एक दम गायब हो गया है यद्यपि मैंने गत दो महीनों से कोई भी दवाई नहीं लगाई है। यह बीमारी वापस आ सकती है पर फिलहाल इससे मुझे मुक्ति मिल गई है।
सुभद्रा गंभीरता से खेती करती है क्यूंकी उसके लिए यह एक अभियान है। वो किसानी इसलिए शुरू की है क्योंकि महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर कार्य करने के दौरान उसने देखी कि महिलाएं रक्ताल्पता और कमजोरी से पीड़ित है। तहक़ीक़ात करने पर उसे समझ में आया कि यह महिलाओं के खान पान में कमी के कारण है। यह कमी वर्तमान में किसानी में निरंतरता का अभाव से उत्पन्न हुआ है। इसलिए सुभद्रा किसानी और महिलाओं को फिर से स्वस्थ बनाने में लगन के साथ जुटी हुई है। पर मेरे लिए गत दो महीनो में खेती एक प्यार भरा दास्तान रहा है एवं 40 वर्ष पहले शुरू हुई ज़िंदगी में सार्थकता की तलाश अब पूरी हो रही है। ।

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