Anarcho-environmentalism allegorised

The name Anaarkali in the present context has many meanings - Anaar symbolises the anarchism of the Bhils and kali which means flower bud in Hindi stands for their traditional environmentalism. Anaar in Hindi can also mean the fruit pomegranate which is said to be a panacea for many ills as in the Hindi idiom - "Ek anar sou bimar - One pomegranate for a hundred ill people"! - which describes a situation in which there is only one remedy available for giving to a hundred ill people and so the problem is who to give it to. Thus this name indicates that anarcho-environmentalism is the only cure for the many diseases of modern development! Similarly kali can also imply a budding anarcho-environmentalist movement. Finally according to a legend that is considered to be apocryphal by historians Anarkali was the lover of Prince Salim who was later to become the Mughal emperor Jehangir. Emperor Akbar did not approve of this romance of his son and ordered Anarkali to be bricked in alive into a wall in Lahore in Pakistan but she escaped. Allegorically this means that anarcho-environmentalists can succeed in bringing about the escape of humankind from the self-destructive love of modern development that it is enamoured of at the moment and they will do this by simultaneously supporting women's struggles for their rights.

Saturday, September 24, 2022

पारंपरिक भील आदिवासी संस्कृति का प्रसार

 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2022 और 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया है, "कई स्वदेशी भाषाओं की विकराल स्थिति की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने और उनके संरक्षण, पुनरोद्धार और प्रचार के लिए संसाधनों और उत्साहियों को जुटाने के लिए।"  पर भील आदिवासी कार्यकर्ता वाहरू सोनवने कहते हैं, भारत सरकार ने अभी तक इस संबंध में कोई कार्यक्रम संबंधी निर्णय नहीं लिया है। अफसोस की बात है कि आजादी के बाद से आदिवासी भाषाओं की उपेक्षा की प्रवृत्ति रही है

अलीराजपुर जिले में भील आदिवासी जन संगठन, खेदुत मजदूर चेतना संगठन (खेमचेस) चार दशकों से भीलों की संस्कृति की पारंपरिक समृद्धि को फिर से जीवंत करने के लिए सक्रिय है और अब भील वॉयस नामक एक इंटरनेट रेडियो और वीडियो चैनल शुरू किया है संयुक्त राज्य अमेरिका के एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर।

अपनी समस्याओं को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने में सक्षम हुए बिना किसी समुदाय का विकास संभव नहीं है। लिखित भाषा और संहिताबद्ध संस्कृति की कमी के कारण भीलों का विशाल समुदाय आधुनिक भारत में हानिकारक रूप से प्रभावित हुआ है। भले ही आदिवासियों को विभिन्न सामाजिक समस्याओं से मुक्त रखने में इसके अपने फायदे हैं, लेकिन आज की वाणिज्य, उद्योग और शासन की जटिल प्रणालियों को देखते हुए इसका मतलब यह है कि भीलों की आकांक्षाओं को सम्पन्न वर्ग की उपभोग की पूर्ति के लिए, लगातार हाशिए पर रखा गया है।

वाहरु सोनवने कहते हैं, "हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज और विश्वदृष्टि हमारी भाषा में व्यक्त की जाती है। हमारे बहुमूल्य ज्ञान की रक्षा तभी हो सकती है जब हमारी भाषा को संरक्षित रखा जाए। जब कोई भाषा संरक्षित नहीं होती है तो वह मर जाती है और उसके साथ जुड़ी संस्कृति और जीवन शैली भी मर जाती है। इस संस्कृति से जुड़े मानवीय मूल्य भी, भाषा के साथ-साथ, तबाह हो जाते हैं

खेमचेस के सचिव शंकर तडवाल कहते हैं, "वर्तमान में विकास के विचार और इसके कार्यान्वयन के बारे में बहस उन भाषाओं में हो रही है जो भीलों के लिए विदेशी हैं और इसलिए वे इसमें योगदान नहीं दे पा रहे हैं। वास्तव में, भीली बोलियों में इन विचारों पर चर्चा करने के लिए शब्दावली का अभाव है। खेमचेस ने इस कमी को दूर करने की कोशिश की है और एक समृद्ध नई लिखित भाषा और साहित्य के निर्माण कर और अपने पारंपरिक संगीत और नृत्य को बढ़ावा देकर क्षेत्र और राष्ट्र के विकास में भीलों को वैचारिक रूप से शामिल किया हैआधुनिक विकास और सांस्कृतिक संदेशों को व्यक्त करने में हमारे पारंपरिक मिथकों और धुनों का उपयोग करने के अनुभव ने दिखाया है कि वे इस उद्देश्य के लिए बेहद प्रभावी हैं। इसके अलावा, ब्रिटिश काल से भील आदिवासी विद्रोह का इतिहास भी बहुत प्रेरणादायक है और खेमचेस द्वारा भील युवाओं को उत्साहित करने के लिए इस का प्रचार किया गया है।"


पश्चिमी मध्य प्रदेश क्षेत्र के विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक विकास के संगठनों द्वारा अब तक इस तरह का नवाचार छुटपुट ढंग से किया गया है। पर अब खेमचेस द्वारा यह काम को व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाया जा रहा है। रानी काजल जीवन शाला की एक शिक्षिका रायटीबाई कहती हैं, खेमचेस ने क्षेत्र के कई अन्य आदिवासी जन संगठनों को आदिवासी शहीदों की जयंती मनाने की पहल करने के लिए प्रेरित किया है और आदिवासी इतिहास और संस्कृति पर हिंदी में कई ग्रंथों को प्रकाशित करने में मदद की है और आगे संपूर्ण भीली लोककथाओं का प्रतिलेखन भी होगा। खेमचेस ने सन 1990 के दशक में महान टानटिया भील, जो अंग्रेजों के हाथ शहीद हुए थे, को एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू की, जिसे अब वैधता और आधिकारिक मान्यता मिल गई है।“

लोकगीतों के रचनात्मक व्याख्या से वैकल्पिक, सामुदायिक और सतत विकास के सिद्धांत और व्यवहार के समर्थन में प्रचुर सामग्री निकाला जा सकता है। उदाहरण के लिए, नर्मदा नदी के पास के गांवों में गाया जाने वाला एक धरती के सृजन मिथक है, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे भगवान अचानक ब्रह्मांड के निर्माण के विचार से घिरे हुए थे और उन्होंने जंगल में जाने और लकड़ी लाने के लिए जंगल में रहने वाले रेलू कबाड़ी से मदद मांगी। इस तरह से शुरू होती है पूरी कहानी कि कैसे धीरे-धीरे सभी जानवर और पौधे बनते हैं और अंत में नर्मदा और ताप्ती नदियाँ। ये नदियाँ विवाह में दूदु हमड़ सागर से मिलती हैं और उनकी यात्रा की प्रक्रिया में सभी विभिन्न गाँव, पहाड़ियाँ और घाटियाँ बनती हैं। पूरा गीत प्रकृति की विशालता और प्राकृतिक प्रक्रियाओं की ताकत का आभास कराता है और इनके लिए श्रोता में सम्मान पैदा करता है।

रानी काजल जीवन शाला के प्राचार्य निंगू सोलंकी कहते है, "हमारी जीवन दृष्टि आधुनिक मनुष्य के अभिमान के सीधे विपरीत है जिसने प्रकृति को अपने स्वयं के अधीन करने की कोशिश की है और आज उसके कारण गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। आदिवासी इस प्रक्रिया के शिकार रहे हैं। इस प्रकार, यह हमारा फर्ज है कि हम हमारे सृजन मिथक को लोकप्रिय बनाय और इस बात पर बल दें कि हमारी आदिवासी विश्वदृष्टि वर्तमान काल में कहीं अधिक "तर्कसंगत" है।“

इसी तरह, एक महाकाव्य में एक महिला के बारे में एक और कहानी है जिसे अपने पति द्वारा किए गए अत्याचार पर सवाल उठाने के लिए दोषी ठहराया जाता है। उसे पंचायत के सामने लाया जाता है जहां पंचों द्वारा आदेश दिया जाता है कि उसकी जीभ काट दी जाए और पति को निगलने के लिए दे दिया जाए। पर वह जीभ पति के गले में फंस जाती है।

इस कहानी दर्शाता है कि भील समाज किस हद तक पितृसत्तात्मक रूप से महिलाओं का दमन करता है। साथ ही, यह तथ्य कि जीभ पति के गले में फंस गई है, महिला को अवसर प्रदान करता है कि वह अपनी जुबान को वापस खींच लें। अपने हकों के लिए बोलने का अधिकार स्थापित कर भील महिलाओं को घर के अंदर और बाहर विविध पितृसत्ताओं के खिलाफ लड़ने के लिए इस कहानी के द्वारा प्रेरित किया गया है।

साहित्य, विशेष रूप से अलंकारिक चरित्र के धार्मिक साहित्य में लोगों को उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति को बदलने के लिए प्रेरित करने की जबरदस्त शक्ति है। दुर्भाग्य से खेमचेस को छोड़कर मध्य भारतीय क्षेत्र के आदिवासियों और विशेष रूप से भीलों के लिए उनके समृद्ध मौखिक साहित्य को लिखने और उपयोग करने का कोई महत्वपूर्ण प्रयास नहीं किया गया है।

अब खेमचेस के इन प्रयासों को एक बड़ा समर्थन मिला है क्योंकि इस प्रयास में अमेरिका के एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के ह्यू डाउन्स स्कूल ऑफ ह्यूमन कम्युनिकेशन के प्रोफेसर उत्तरन दत्ता इससे जुड़ गए हैं। उल्लेखनीय है कि एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी विगत आठ वर्षों से लगातार अमरीका के विश्वविद्यालयों में नवाचार में प्रथम स्थान पर है। प्रोफेसर दत्ता ने अलीराजपुर जिले में नर्मदा नदी के तट पर ककराना गांव में खेमचेस द्वारा संचालित आदिवासी बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय रानी काजल जीवन शाला में एक आधुनिक रिकॉर्डिंग स्टूडियो स्थापित करने में मदद की है, जहां भीली भाषा में व्याख्यान और संगीत रिकॉर्ड किए जाते हैं और फिर इंटरनेट रेडियो और यूट्यूब चैनलों पर अपलोड किया जाता है।

स्टूडियो में एक स्वतंत्र रिकॉर्डिंग सुविधा है और युवाओं को मीडिया उत्पादन में कुशल बनने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है 
यह स्टूडियो भील आदिवासियों की पारंपरिक स्थापत्य शैली में बनाया गया है। खेमचेस के सचिव शंकर तड़वाल ने कहा, "चार पश्चिमी भारतीय राज्यों, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भील आदिवासियों द्वारा यहाँ श्रव्य दृश्य सामग्री तैयार किया जाता है और स्टूडियो युवाओं के लिए एक प्रशिक्षण सुविधा के रूप में भी काम करता है। स्कूल के लड़के-लड़कियां मीडिया प्रोडक्शन में दक्ष हो रहे हैं।

1 जुलाई, 2022 को हुए उद्घाटन के बाद से भील वॉयस यूट्यूब चैनल ने हजारों व्यूज हासिल कर लिए हैं और यह समय के साथ बढ़ता जाएगा जैसे जैसे सांस्कृतिक कायाकल्प प्रक्रिया और मजबूत होती है।

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